शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

इन्सान की पहचान बचा

इन्सान की पहचान बचा

मै घर का नाविक हूँ
तू संसार का नाविक है
मै पथ का साथी हूँ
तू पथ का मंजिल है
मै इंसानी रिश्ता हूँ
तू एहसास का सागर है
मै गागर हूँ तू सागर है
मै भक्त हूँ तू भगवान है
मै इन्सान हूँ नादान हूँ
मै तेरा ही वरदान हूँ
तू भी बना इन्सान है

भक्त को जनता है
भगवान को जनता है
फिर इन्सान की पीड़ा पर
तू चुप क्यों हो जाता है
मै तेरा ही स्वाभिमान हूँ, नाम हूँ
तू है अन्तर्यामी मै अज्ञानी
तू सब जनता है, मानता है
फिर तेरा ही इन्सान क्यों आज शैतान बना
इन्सान को इन्सान बना !

इन्सान की पहचान बचा !!
मन तो कपटी है, चंचल है
मनो यग्य का तू सर्वग्य सदा
हे प्रभो !इन्सान को इन्सान बना
तू ही भक्त है तू ही भगवान है
इन्सान को भगवान बना
भक्त की पहचान बचा
सच इन्सान को इन्सान बना
इन्सान की पहचान बचा !!

बहुत हो गयी रात,करो उजाले की बात
मन का सूरज उगा भगवन
धरती पर होता नित पाप का हवन
योगी मन बसा भगवन
इन्सान को इन्सान बना
इन्सान की पहचान बचा !!

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