शनिवार, 13 अगस्त 2011

सैर सपाटा

कलकत्ते से दमदम आए
बाबू जी के हमदम आए
हम वर्षा में झमझम आए
बर्फी, पेड़े, चमचम लाए।

खाते पीते पहुँचे पटना
पूछो मत पटना की घटना
पथ पर गुब्बारे का फटना
तांगे से बेलाग उलटना।

पटना से हम पहुँचे राँची
राँची में मन मीरा नाची
सबने अपनी किस्मत जाँची
देश-देश की पोथी बाँची।

राँची से आए हम टाटा
सौ-सौ मन का लो काटा
मिला नहीं जब चावल आटा
भूल गए हम सैर सपाटा !

युवा होती बेटी, बूढ़ा होता पिता

युवा होती बेटी में उद्भूत हो रही है स्त्री
बुढ़ाते पिता में पुरुष अब थकने लगा है
दोनों के रिश्ते नहीं हैं अब पहले से सहज

बेटी अब पहले की तरह लगाती नहीं अबूझ प्रश्नों की झड़ी
उँगली पकड़कर चलने की जिद नहीं करती
पिता को बेटी कुछ अजनबी लगने लगी है
बहुत कुछ छुपाना सीख गई है वह पिता से अब

दोनों नहीं करते
अब रिमोट के साथ पहले की सी मटरगश्ती
टेलीविजन पर अन्तरंग दृश्यों से
असहज हो उठता है पिता
उपक्रम करता है
किसी बहाने से चैनल बदलने का

युवा होती बेटी के लिए
दुनिया की रंगीन किताब के पृष्ठ धीरे-धीरे खुल रहे हैं
उसके पास केवल अभी चटक रंग है
पिता रंगीन किताब के भीतर की
काली लिखावट भी पहचानता है

जानता है वह
एक दिन अचानक कोई अजनबी
हो सकता है बेटी के लिए
पिता से भी बढ़कर महत्वपूर्ण
वह खुद के विस्थापन की संभावना के यथार्थ
से समझौते की प्रक्रिया में है

युवा होती बेटी अक्सर नींद में मुस्कुराती है
बूढ़े होते पिता को दुस्वप्न ज्यादा आते हैं

पिता का संताप

एक अनजान शहर में
उदास बीबी और अबोध बच्चों के साथ
बिताते हुए ये ये एकाकी दिन
मुझे हरवक़्त कुरेदता रहता है
उनका वह भीतरी संताप :

पीढ़ी-दर-पीढ़ी
एक भरे-पूरे कुनबे का
एक-एक कर बिखरते जाना,
बरसों बाद
ब्याह-सगाई-जनम-मरण के अवसरों पर
मन-रीते मिलना -
रीसने-रोने और परस्पर कोसने के
अनवरत अभ्यास में !

फिर उसी रीत में
बिखर जाना
दुलारों का बीज की मानिन्द
और असहाय पिता का
रात-रात भर सो नहीं पाना -

सीने में बजती बलगम
और आँतों में अटकी साँस को
सम्हाले रखने का
जी-तोड़ जतन करना -

धड़कते हुए कलेजे में
सँजोए रखना
एक अदद कुँआरी बेटी का अवसाद
और गुज़ारे की खोज में
परदेस गये बेटों का
बेचैन बैठे इन्तज़ार करना !

जब से सुना है कि
ऊँची कमाई की आस में
लोग भेज दिया करते हैं
अपने जवान होते बेटों को
सात समन्दर पार

जो कभी पलट कर लौट नहीं पाते
अपनों के बीच -

फिर उसी संताप में
डूब जाते हैं
हम बेबस सपूतों के
बूढ़े नेक और नरमदिल पिता !

पिता, पति पुत्र

अगर तुम्हारा जन्म नारी के रूप मे हुआ है तो
बचपन में तुम पर
शासन करेंगे पिता
अगर तुम अपना बचपन बिता चुकी हो
नारी के रूप में
तो जवानी में तुम पर
राज करेगा पति
अगर जवानी की दहलीज़
पार कर चुकी होगी
तो बुढ़ापे में
रहोगी पुत्र के अधीन


जीवन-भर तुम पर
राज कर रहे हैं ये पुरुष
अब तुम बनो मनुष्य
क्योंकि वह किसी की नहीं मानता अधीनता -
वह अपने जन्म से ही
करता है अर्जित स्वाधीनता

एहसान मंद हूँ पिता जी

एहसानमन्द हूँ पिता

कि पढ़ाया-लिखाया मुझे इतना

बना दिया किसी लायक कि जी सकूँ निर्भय इस संसार में

झोंका नहीं जीवन की आग में जबरन

बांधा नहीं किसी की रस्सी से कि उसके पास ताकत और पैसा था

लड़ने के लिए जाने दिया मुझको

घनघोर बारिश और तूफ़ान में


एहसानमन्द हूँ कि इन्तज़ार नहीं किया

मेरे जीतने और लौटने का

मसरूफ़ रहे अपने दूसरे कामों में

पिता की चिट्ठी

कभी इस ओर आओ तो
घर भी आना।

नज़दीक आ रहा
दादा का श्राद्ध
बहन की नहीं निभ रही ससुराल में
निपटाना है झगड़ा जमीन का
कभी इस ओर आओ तो
घर भी आना।


गाय ने दिया है बछड़ा
आम में आया है बूर
पहली बार फूला है
तुम्हारा रोपा अमलतास।

पीपल हो गया खोखला
पत्तियाँ हरी हैं

दादी की कम हुई यादाश्त
तुम्हारी याद बाकी है।

माँ देखती है रास्ते की ओर
काग उड़ाती है रोज़
कभी इस ओर आओ तो
घर भी आना।

दीवार में बढ़ गई है दरार
माँ का नहीं टूट रहा बुखार
दादा ने पकड़ ली है खाट
सभी जोह रहे तुम्हारी बाट
खत को समझना तार।

शेष सब सकुशल है
कभी इस ओर आओ तो
घर भी आना।

एक दिन की बात

उस दिन तू मुझको लगी थी
अतिमोहक, अभिरामा, अलबेली
बच्चों के संग झील में थी तू
कर रही थी जलकेली
मुझे तैरना नहीं आता था
इसलिए जल मुझे नहीं भाता था

मैं खड़ा किनारे गुन रहा था
तेरे शरीर की आभा
और मन ही मन बुन रहा था
एक नई कविता का धागा
तभी लगा अचानक मुझे
तू डूब रही है
मैं तेज़ी-से तुझ तक भागा

मन मेरा बेहद घबराया
दिखी नहीं जब तेरी छाया
तब कपड़ों में ही सीधे
मैं जल में कूद पड़ा था
तुझे बचाने की कोशिश में
ख़ुद मैं डूब रहा था

अब तू घबराई
पास मेरे आई
आकर मुझे बचाया
फिर मैं हँसता था, तू हँसती थी
तूने मुझे बताया--

"नहीं-नहीं मैं डूबी कहाँ थी
कर रही थी तुझसे अठखेली"
फिर शरमाई तू ऎसे मुझसे
जैसे वधू हो नई-नवेली

जाड़े की धुप

कई दिन तक घिरे
घने कुहासे के बाद
खिली धूप जाड़े की ।
देखकर
खिल उठा मन
जैसे
छठें वेतन आयोग के अनुसार
मिली हो तनख़्वाह की पहली किस्त ।
जैसे
साठ रुपये किलो से
बारह पर आ गया हो
प्याज का भाव ।
धूप से मैं
और धूप मुझसे
दोनों एक दूसरे से
लिपट गए
जैसे स्कूल से पढ़कर
लौटे नर्सरी के बच्चे को
लिपटा लेती है माँ ।
धूप सोहा रही थी
जैसे जली चमड़ी पर
बर्फ़ का टुकड़ा ।
धूप खिलने की ख़बर
आतंकी अफ़ज़ल कसाब की
गिरफ़्तारी के समाचार-सी
फैल गई
गाँव-गाँव, शहर-शहर ।
लोग बाँचने लगे
उलट-पुलट कर
एक-एक पृष्ठ.

हमारे भ्रष्ट राज नेता

The only place in India where food is cheap:
Tea- Rs. 1.00/-
Soup- Rs. 5.50/-
dal- Rs. 1.50/-
dosa- Rs. 4.00/-
......biryani- Rs. 8. 00/-
chicken- Rs. 24 .50/-
These items are meant for poor people & are available at
"Indian Parliment canteen"
The salary of those poor people is Rs.80,000/month without income tax...!!!
Copy this as ur status to show these ministers' poverty to every one...

हमारे भ्रस्त

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