सोमवार, 15 अगस्त 2011

मेरी परेसान माँ

मौत की आग़ोश में जब थक के सो जाती है माँ

तब कहीं जा कर राजा थोडा सुकून पति है माँ
फिकर में बच्चो की कुछ तरह घुल जाति है मां
नौजवान होते हुए बूढी नज़र आती है मां

रूह के रिश्ते की सुनो गहराइया देखिए
चोट लगती है हमारे और चिल्लाती है मां

ओढती है हसरतों का बोसीदा कफ़न के लिए खुद
चाहतों का पैरह बच्चो को पहनती है माँ

एक एक हसरत को अपने आज्मो इस्तेखाल से
आंसुओ से घुसल दे कर खुद हाय दफनाती है माँ

भूखा रहने हाय नहीं देती यतीमो को कभी
जेन किस किस से कहाँ से माँग कर लाती है माँ

हड्डियों का रास पिला कर अपने दिल के चैन को
कितनी हाय रातो में खली पेट सो जाती है मां

जेन कितनी बर्फ सी रातो मुझे ऐसा भी हुआ
बच्चा छाती पे हाई गीलेमें तो जाति है मां के लिए

जब खिलोने को मचलता है कोई घुर्बत का फूल
आंसुओं के साज संसद बच्चे को बहलाती है मां

फ़िक्र
के शमशान मुझे आखिर चिताओं की तरह
जैसे सूखी लकडिया की तरह जल जाति है मां

भूख
से मजबूर हो कर मेहमानों के सामने
मांगते
हैं बच्चे प्रहार शर्माती है मां के लिए रोटी

मुफलिसी
की बच्चे जोड़ें बराबर प्रहार उठा लेती है हाथ
जैसे हो मुजरिम कोई तरह शर्माती है माँ